आज कल देखा
आज सूरज को लम्बे डग भरते देखा
जब शाम को चाँद ने उसे घूरके देखा
जब सितारों ने सुबह को उगते देखा
तब चंद्रमा को कोटर में छिपते देखा
सृष्टि को जंतु जगत को रचते देखा
वन में पुष्पों को पल्लवित होते देखा
पत्तों पे ओंस को मोती बनते देखा
संध्या काल में फूलों को गिरते देखा
आशा को घोर निराशा मिटाते देखा
उत्कोच को अपेक्षा में बदलते देखा
जीवों को इस कालचक्र में जीते देखा
इसी क्रम में कालकलवित होते देखा
रामकिशोर उपाध्याय
आज सूरज को लम्बे डग भरते देखा
जब शाम को चाँद ने उसे घूरके देखा
जब सितारों ने सुबह को उगते देखा
तब चंद्रमा को कोटर में छिपते देखा
सृष्टि को जंतु जगत को रचते देखा
वन में पुष्पों को पल्लवित होते देखा
पत्तों पे ओंस को मोती बनते देखा
संध्या काल में फूलों को गिरते देखा
आशा को घोर निराशा मिटाते देखा
उत्कोच को अपेक्षा में बदलते देखा
जीवों को इस कालचक्र में जीते देखा
इसी क्रम में कालकलवित होते देखा
रामकिशोर उपाध्याय
Nirantar badhte rehne ka naam jindagi ...sundar rachna .
ReplyDeleteMinakshi Pant ji prerak shabdon le liye sadar abhar.
ReplyDeleteTushar Raj Rastogi ji,is rachna kao blog bulletin me sthan dene ke liye abhar
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