उठा कर चल रहा हॅू मैं
सलीब खुद के कांधें पर आज भी --
ठुकी हैं कीले
मेरे जिस्म में आज भी--
गर एक भी आंसू आंख के किसी कोने मे आया
तो जमाना रो पडेगा
यह जानकर मैं रोता नही
कर रहा हॅू प्रार्थना
हे पिता !
क्षमा कर दो उन्हे
वे जानते नही वे क्या कर रहे हैं
सह रहा हॅू दर्द बडी़ खामोशी से --
कि वह उतर लाये मानवता के सीने में
करुणा बनके
प्रेम बनके
और उभर आये मुस्कान बनके
उसके चेहरे पर
जो कभी हंसा ही नही