Saturday 24 March 2012




विश्वास का बरगद.
banyan tree 

विश्वास की गहराई
इतनी गहरी जैसे बरगद की जड़े 
विश्वास का प्रभाव
इतना घना जैसे बरगद की छाँव
विश्वास का रिश्ता
इतना सशक्त जैसे बरगद की शाखाएं
विश्वास पर आघात 
इतना भयावह  जैसे बरगद  का  जड़ सहित उखड़ना.

Friday 23 March 2012

दिन में रात


सूरज

पूछ रहा था खुद से ही कि क्यों दिन में रात हुई -

ना ही कोई आंधी चली

ना ही कोई उठी बदली

नभ पर अजब सी हलचल हुई

सितारें आसमान की गठरी से निकल चांद को ढूंढने लगे

और चांद खुद सूखे पेड पर जा छिपा

उल्लू कोटरे से बाहर झांकने लगे

सियार अपने शिकार को निकलने लगे

बिल्लिंया मुंह उठाने लगी

कुत्ते सोने के लिए ओंट ढूंढने  लगे

सूरज की बेचैनी बढ चली

अपने सातों घोडों को रथ में  जोतने   को ही था -

देखा कि रति ने विरह में चेहरे पर

लटांए फैलाकर आसमान को ताका था.