Friday, 23 March 2012

दिन में रात


सूरज

पूछ रहा था खुद से ही कि क्यों दिन में रात हुई -

ना ही कोई आंधी चली

ना ही कोई उठी बदली

नभ पर अजब सी हलचल हुई

सितारें आसमान की गठरी से निकल चांद को ढूंढने लगे

और चांद खुद सूखे पेड पर जा छिपा

उल्लू कोटरे से बाहर झांकने लगे

सियार अपने शिकार को निकलने लगे

बिल्लिंया मुंह उठाने लगी

कुत्ते सोने के लिए ओंट ढूंढने  लगे

सूरज की बेचैनी बढ चली

अपने सातों घोडों को रथ में  जोतने   को ही था -

देखा कि रति ने विरह में चेहरे पर

लटांए फैलाकर आसमान को ताका था.

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