हो कितना प्रेम का
परिमाण-
भावनाओं की उफनती नदी में
बिना किश्ती व पतवार के उतरजाना
डूब कर लगा लेना जल समाधि-
पाल लेना एक लाईलाज व्याधि-
या
फिर उफनते ज्वार को
सिर्फ पोरूओं से स्पर्श करना
भावनाओं की गहराई में डूबने के भय से
उथले तर्को से करना तिरस्कार
प्रेम का नही होता हैं परिमाण----
प्रेम का होता हैं सिर्फ परिणाम---
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