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आओ झोले से
कुछ ख्वाब निकाले
चलो फिर दुखिया की ओर
कुछ मुस्कान उछाले
साँझ से पहले
बचाले दीप के उजाले
धूप की डिबिया में
रात का सारा काजल छिपा ले
आओ झोले से
कुछ ख्वाब निकाले ..............
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रामकिशोर उपाध्याय
* यदि तू हां कहे तो जीत लूं धरती और पर्वत और बना लूं एक पर्ण कुटीर जहाँ हम हो और हो मादक समीर झूमती हर दिशा हो जाये कह-कह कर अधीर बस एक ही शब्द प्रेम ....... * गर तू हां कहे ........ तो लिख डालूं इस गगन पर और भर दूँ काग़ज सारे कोरे -कोरे ढूँढती रहे निशा चांदनी में जिसे चाँद के धोरे -धोरे बस एक ही शब्द प्रेम .................... * रामकिशोर उपाध्या
न वादे, न कसमें न वफ़ा, न जफ़ा न हम उन्हें बाँध पाए न वो आज़ाद रह पाए मिले तो मुकद्दर न मिले तो खली नहीं तन्हाई मोहब्बत ने यह ताउम्र कैसी अज़ीब शर्त निभाई * रामकिशोर उपाध्याय