जन्म से मरण तक की सीढ़ियों के उसपार
शून्य से आरंभ और शून्य की ओर उन्मुख यह देह का आकार
खोज रहा है सदैव सत्य को
मैं ही नहीं
सन्यासी भी ...
अपनी तपस्या में
कवि .भी ..............
अपनी नवयौवना कल्पना में ,शिल्प में
लेखक ..
अपने गद्य में ..गल्प में
दार्शनिक ..
मर्मभेदी तर्क की कसौटी पर
वैज्ञानिक ..
निरीक्षण ,परीक्षण व अन्वेषण की जद्दोजहद में
क्या वह मिलेगा .......
पीड़ित की दर्द भरी चीत्कार में
कबेले की सर्द सीत्कार में
या ...
ध्रुव पर पेंग्विन की मस्त चाल में
या आगंतुक की पदचाप में
जो सुन रही है विरहणी टकटकी बांधे
या कोठे पर बजते घुंघरू में
चीत्कार ,सीत्कार ,पदचाप ,घुंघरू ही
क्यों बनते हैं सत्य की अभिव्यक्ति .............
सत्य को खोजा सभी ने
क्या कोई अंतर में बजते नाद में स्वयं को सुन पाया
कोई इसे खोज ले ,,,'
क्योंकि स्वयं की खोज ही ...........सत्य की खोज है .......
*
रामकिशोर उपाध्याय
शून्य से आरंभ और शून्य की ओर उन्मुख यह देह का आकार
खोज रहा है सदैव सत्य को
मैं ही नहीं
सन्यासी भी ...
अपनी तपस्या में
कवि .भी ..............
अपनी नवयौवना कल्पना में ,शिल्प में
लेखक ..
अपने गद्य में ..गल्प में
दार्शनिक ..
मर्मभेदी तर्क की कसौटी पर
वैज्ञानिक ..
निरीक्षण ,परीक्षण व अन्वेषण की जद्दोजहद में
क्या वह मिलेगा .......
पीड़ित की दर्द भरी चीत्कार में
कबेले की सर्द सीत्कार में
या ...
ध्रुव पर पेंग्विन की मस्त चाल में
या आगंतुक की पदचाप में
जो सुन रही है विरहणी टकटकी बांधे
या कोठे पर बजते घुंघरू में
चीत्कार ,सीत्कार ,पदचाप ,घुंघरू ही
क्यों बनते हैं सत्य की अभिव्यक्ति .............
सत्य को खोजा सभी ने
क्या कोई अंतर में बजते नाद में स्वयं को सुन पाया
कोई इसे खोज ले ,,,'
क्योंकि स्वयं की खोज ही ...........सत्य की खोज है .......
*
रामकिशोर उपाध्याय