कल सुबह जब घूमने पार्क में निकला तो देखा कि एक गाय खड़ी है। वैसे इस पार्क में मैंने पहले कभी एक कुत्ता या बिल्ली भी नहीं देखी थी । अतः एक गाय का वहाँ होना अचंभा था। गाय से शरीर से जेर (गर्भनाल ) लटकी हुई थी जिससे यह अनुमान लगाना कठिन नहीं था कि उसने एक बछिया या बछड़े को जन्म दिया होगा । अगला चक्कर पूरा करते हुए जब उसी स्थान के निकट आया तो ध्यान से देखा कि वहाँ उसका बच्चा पड़ा था जिसे वह चाट रही थी और मुझे देखकर चौकस हो गयी। बच्चा खड़े होने का प्रयास कर रहा था और गाय उसे चाट -चाटकर उठने के लिए भी उत्साहित कर रही थी। माँ का ममता के साथ सहलाना उनमें शक्ति का संचरण कर रहा था। थोड़ी देर बाद वह खड़ा हो गया। थोड़ी देर गाय अवश्य की बछड़े को लेकर इस इंसानी पार्क से निकलकर अपने मालिक के पास चली गयी होगी।उसका मालिक जरूर कोई दूध का लालची और लापरवाह इंसान रहा होगा,वरना अपनी इस दुधारू गाय को ऐसे क्रिटिकल समय में यूँ ही नहीं छोड़ देता।बचपन में गांव में गाय पाली हैं इसलिए दुख भी हुआ यह देखकर। यह बात तो बड़ी मामूली सी है और ममत्व के ऐसे उदाहरण भी हर मादा में रोज देखते ही हैं। यह हमारे जीवन का हिस्सा है।फिर भी न जाने क्यों मुझे यह दृश्य प्रभावित कर गया । घर आकर पत्नी को जब यह किस्सा सुनाया उस समय वह मेरे लिए चाय बना रही थी । उसने मुझे पूछा कि आपको पता नहीं इस विषय में। मेरे इस विषय में जानकारी से इनकार करने पर एक लघु लोक कथा सुना दी ।
बहुत पहले (हो सकता है सतयुग )की बात है कि एक गांव में एक गाय ने एक बच्चे को जन्म दिया। बच्चा जमीन पर पड़ा था। प्रसूति के बाद गाय अपने आप को अशक्त अनुभव कर रही थी। तभी उसने एक महिला को पास से गुजरते हुए देखा तो आवाज दी । "बहन , जरा मेरे बच्चे को उठाकर खड़ा कर दे । " महिला ने इनकार करते हुए कहा कि तेरा बच्चा गंदा है। मेरे कपड़े और हाथ खराब हो जाएगी।"
गाय ने कहा ," ठीक है। मैं तो अपने बच्चे को चाट- चाटकर खड़ा कर लुंगी। और तुझे यह शाप देती हूं कि तेरा बच्चा तीन साल से पहले ठीक से चलने -फिरने लायक नहीं होगा।" पत्नी ने बात को तार्किकता से आगे बढ़ाते हुए कहा कि हमारे बच्चे साल भर तक तो सामान्यतया खड़ा होने में लेते हैं और ठीक- ठाक से चलने में आगे और दो साल ले ही लेते हैं।यह गाय का शाप हर स्त्री को लग गया ।बात में दम लगा कि गाय को जब अपने बछड़े को चाट- चाट कर खड़ा करते देखा । लगता है कि गाय युगों से अपनी संतान को इसी तरह सहारा दे रही है और स्त्री जाति को अभी भी अपनी संतानों की ठीक से आरंभिक परवरिश करने में तीन साल तक कष्ट उठाने ही पड़ रहें है। मैं अपनी वैज्ञानिक दृष्टि से समझता हूँ कि यह बालविकास की स्वाभाविक जीव वैज्ञानिक प्रक्रिया है । किन्तु इसे गाय का मानव जाति के प्रति शाप या अभिशाप नहीं है,यह भी मैं नहीं कह सकूंगा,क्योंकि मित्रो,पत्नी, जो स्वयं माँ भी है, की बात को काटना कितना मुश्किल होता है,यह आप सब जानते हैं।हम लोग मिथकों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक इसी तरह पहुंचाते रहते हैं और अपनी मिथकीय समझ को देशकाल और परिस्थितियों के अनुरूप विकसित करते रहते हैं । हाँ, यह एक निर्विवाद सर्वकालिक सत्य है कि माँ की ममता में अभूतपूर्व जीवनदायनी शक्ति होती है जो बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान करती है।
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रामकिशोर उपाध्याय