क्या तुम सुन रहे हो ,,,, वर्ष 2014......
***********************
एक ख़्वाब सा
बुन रही हैं ये आंखे
अभी तो तुम्हे देखा ही नहीं.....
एक घरोंदा सा
रेत का बना रही हैं ये उँगलियाँ
कई कामनाओं का
जिन्हें अभी सोचा ही नहीं.......
एक खियाबां सा
खिल रही हैं मेरे पिछवाड़े में
मेरी वो सब आरजुएं
जिन्हें अभी कहा ही नहीं .....
क्या तुम सुन रहे हो ,,,,
वर्ष 2014...................
***********************
एक ख़्वाब सा
बुन रही हैं ये आंखे
अभी तो तुम्हे देखा ही नहीं.....
एक घरोंदा सा
रेत का बना रही हैं ये उँगलियाँ
कई कामनाओं का
जिन्हें अभी सोचा ही नहीं.......
एक खियाबां सा
खिल रही हैं मेरे पिछवाड़े में
मेरी वो सब आरजुएं
जिन्हें अभी कहा ही नहीं .....
क्या तुम सुन रहे हो ,,,,
वर्ष 2014...................