Wednesday, 11 December 2013
















बस कुछ और लम्हे बाकी हैं ..
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फलक पर
छा गए हैं अब्र
नहीं हैं नामोंनिशान आफ़ताब का 
दूर तलक कहीं
बहती नसीम कर रही हैं
हलचल ठहरी झील के आब में
यहाँ तो
ना कोई शोर
ना ही हरकत
ये वक़्त की इक्तिज़ा हैं
कि एक इत्तिहाद कायम हो
कोई कौल और करार हो
ख़याल और खुमार में
ख्वाहिशों के दस्तूर में
गोशा –गोशा पुरनूर हो
हैं हर शजर तैयार
बनके गवाह
भंवरे भी गुनगुना रहे हैं
पास की खियाबां में
गिरह खोल दो खलिश की
अब और खफ़ा होना मुनासिब नहीं हैं
उठाके गेसू रूबरू हो जाओ
खाली पड़ी ये बेंच
भी एक इशारा हैं
कि आओ पास बैठो
कुदरत की ये चिलमन
उठने में
बस
कुछ ही लम्हे बाकी हैं ..........
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रामकिशोर उपाध्याय

3 comments:

  1. लाजवाब चिलमन है कुदरत की ...

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  2. दिगम्बर नासवा जी सराहना के लिये हृदयतल से आभार

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  3. दिगम्बर नासवा जी सराहना के लिये हृदयतल से आभार

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