आज हवा
नीचे से ऊपर को बह रही
आदमी
हमे अब कुत्ता पुचकार रहा है
घोड़ा
अब गाड़ी में बैठा सोच रहा
और उसे कोचवान खींच रहा
भगवान भक्त को ढूंढता
टीवी पर चीख चीख कर पुजारी का मोल पूछता
घड़े को जल पी रहा
मछलियाँ अब हवा में तैर रही
बकरियां अब खुद अपना दूध पी रही
हाथ की लकीरों को
भाग्य पढ़ रहा है ..
पेड़ की शाख पर बीज उग रहा
बेटा अब माँ को जन्म दे रहा..
सूरज की रौशनी को दिया चाट रहा
सूरज ............
पश्चिम से पूरब को चल रहा है
घर के ईशान कोण में
उजाला भी है तो कैसा है ..........सुबह का
आंख खुलते ही ...........
सबकुछ गड्ड मड्ड है ...
उफ्फ क्या यह देख रहा हूँ ?
सर पकड़कर बैठ भी नही सकता ........
धूप भी कुछ गीली गीली है
अरे यह भी तो नीली नीली है ..
काले आसमान में
छाँव धरुं भी तो कहाँ ................
इस नीली धूप में
*
रामकिशोर उपाध्याय
नीचे से ऊपर को बह रही
आदमी
हमे अब कुत्ता पुचकार रहा है
घोड़ा
अब गाड़ी में बैठा सोच रहा
और उसे कोचवान खींच रहा
भगवान भक्त को ढूंढता
टीवी पर चीख चीख कर पुजारी का मोल पूछता
घड़े को जल पी रहा
मछलियाँ अब हवा में तैर रही
बकरियां अब खुद अपना दूध पी रही
हाथ की लकीरों को
भाग्य पढ़ रहा है ..
पेड़ की शाख पर बीज उग रहा
बेटा अब माँ को जन्म दे रहा..
सूरज की रौशनी को दिया चाट रहा
सूरज ............
पश्चिम से पूरब को चल रहा है
घर के ईशान कोण में
उजाला भी है तो कैसा है ..........सुबह का
आंख खुलते ही ...........
सबकुछ गड्ड मड्ड है ...
उफ्फ क्या यह देख रहा हूँ ?
सर पकड़कर बैठ भी नही सकता ........
धूप भी कुछ गीली गीली है
अरे यह भी तो नीली नीली है ..
काले आसमान में
छाँव धरुं भी तो कहाँ ................
इस नीली धूप में
*
रामकिशोर उपाध्याय