क्यों बैठे हो द्वार से सटकर ?
तीन दिवस से हठकर
क्या तुम्हे यह नहीँ बतलाया
कि नहीँ ठहरते द्वार पर
क्या स्वर्ग नर्क का ठिकाना नहीँ किसी ने दिखाया
हो कौन तुम ?
मैने तो तुम्हे नहीँ बुलवाया
नही हूँ किसी ऋषि की संतान
रखता हूँ बस साधारण मानव सी पहचान
नहीँ आया हूँ पाकर अपने पिता का शाप
मुझे तो बस काट गया था मानवता का साँप
फिर आना पड़ा यहाँ श्रीमान
कहते है यही विधना का था फ़रमान
जब थे नहीँ तुम नचिकेता
फिर क्यों रहा द्वार पर तीन दिन बैठा
बोला तो है प्रभु , हूँ एक मानव जात
हाय ! यहाँ भी पडने लगी लात
मेरा भी कुछ अधिकार
हो शक्ति सम्पन्न,हो जाये कुछ मेरा भी उद्धार
सुनो प्रभु !!
नहीँ चाह मुझे पहचाने अगले जन्म में पिता
उसने ही ने तो मुझे था उस नरक में घसीटा
क्या तुम दे सकते अभय का वरदान ?
जाकर मैं कर सकूं लेखनी से स्वतंत्र सृजन अवदान
कुछ और मांगो वत्स !
ओके !!
चाह नहीँ मुझको मिले अमरता का ज्ञान
मुझको मानव होने में ही हौ सुख महान
थी धरा पर सुरम्य घाटियाँ
खिलती थी फूलों सी बेटियों की क्यारियाँ
क्या तुम दे सकते हो कि हो सुरक्षित सब नारियां
कुछ और मांगो वत्स !!
राइट सर !ii
चाह नहीँ मुझको जानूं हवन विधि और कहलाऊँ अग्निहोत्र
धन लेकर पाप खरीदूं दूजों के बतलाकर स्वगोत्र
क्या सिखला सकते हो करे सब कैसे वो अपने-अपने कार्य
हलवाहे,श्रमिक,शिक्षक हो नेता अभिनेता और अधिकारी से अधिक स्वीकार्य
कुछ और मांगो वत्स !!
मगर क्यों !!!!
तीन प्रश्न थे नचिकेता के जिनके तुमने दिये थे उत्तर
ऋषिपुत्र के सामने हुये तुम्ही थे निरुत्तर
अब क्या इस युग में तुम इतने कमजोर हो
क्या रहे नहीँ अब सत्य,बस सत्य का शोर हो
वत्स,चुनाव सर पर है देवलोक में
यहाँ भी वैसा ही है जैसा भूलोक
कुछ भारतीय नेता अब यहाँ के आवासी है
ले आये यहाँ भी लोकतंत्र
कौन होगा अगला यम ,यहीं उदासी है
जिसको चाहे चुन लेना
मतदाता कॊ कुछ हरे गुलाबी नोट देना
कुछ कॊ मज़हब धरम की अफीम बाँट देना
किसी कॊ खाट पर बिठाकर समझा देना
या बिजली पानी फ्री कर देना
चुप्प !!!
वत्स ! यहाँ है सच में लोकतंत्र
नहीँ तुम्हारे वाला लठतंत्र
ज्यादा चू चा नहीँ
ले जाओ विश्रामगृह की चाबी
यहाँ बहुत है काम बाकी
चुनाव नतीजों के बाद
अगले यम ही आपके प्रश्नों के उत्तर देंगे
अभी आचारसंहिता लागू है
जो आज्ञा प्रभु !!!
*
Ramkishore उपाध्याय