Saturday, 29 March 2014

तुम आ ही जाते हो
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यह कैसी अनुभूति का स्पर्श है
अब स्थूल रह ही कहाँ गया है, केवल स्थूलेतर है
और सूक्ष्म जाने किधर है, यह काल जानता हैं
'स्व' हुआ स्वाहा, 'समाधि' सी लगी है
फिर भी न जाने तुम आ ही जाते हो
कभी सांस बनकर
कभी धडकन बनकर
रामकिशोर उपाध्याय

Tuesday, 4 March 2014














रासायनिक क्रिया
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मैंने
तो बड़े मीठे -मीठे ख़्वाब बसाए थे
इन आँखों में ...

मगर इन्ही आँखों से
ख्वाब
जब आंसू बनकर बह निकले
तो बड़े ही नमकीन निकले...

कभी -कभी
खून के कतरे
आंसू की जगह
आँखों के कोने में उभरे .....

यह कौन सी
रासायनिक क्रिया हैं ......

रामकिशोर उपाध्याय

जांच के आदेश .....

कौन 
खड़े हो क्यों मौन
हुज़ूर मैं एक मजदूर 
पैसे से हूँ मजबूर 
कभी किसी की बाई 
कभी किसी की रसोई की सफाई 
बेटा और कभी बेटी बीमार 
कभी बूढी माँ को पैसे की दरकार 
बहुत महंगाई है
दाल भी सौ रूपये में एक किलो आई हैं 
प्याज का दाम न पूछो 
किसकी कुर्सी का बाप हैं, न पूछो 
किस-किस का भाव बताऊँ 
कौन -कौन सा दुखड़ा सुनाऊं
नौकरी से भी आपने निकाल दिया ....
 सरकार कुछ मदद हो जाये 
दूंगा दुआ 
मिलेंगी अगर बीमार को दवा
साहब खैरात नहीं 
उधार चाहिए 
हर महीने की मजदूरी से कटना चाहिए  
अब यह कैसे कहूँ .....

न जाने कहाँ से आ जाते है
खुद को खुद्दार बताते हैं 
पर मजदूर 
और मजबूर 
होने का नाटक दिखाते हैं 
कहाँ से दे तुम्हे ?
पिछले साल  साढ़े चार फ़ीसदी बढ़ा व्यापार 
घाटे ने किया चौपट हैं और लाचार 
पेट्रोल और डीज़ल के दाम में आग लगी 
तो मजदूरों की छटनी  करनी पड़ी 
बीबी और बच्चों का जेबखर्च 
नही कर सकते कम 
वे तो कर देते हैं नाक में दम 
होटल में जाना कर दिया कम 
रोज नही ,बस तीसरे दिन में गए थम 

सुनकर
मजदूर पत्रकार की ओर मुड़ा 
पत्रकार  भी भूख से रहा था लड़खड़ा 
बोला मजदूर ..
मित्र ,तुम तो हमारे सच्चे हितेषी हो 
यहीं के और देशी हो 
कैसे चलेगा जीवन ...
कुछ तो लिख डालों ,चलो दो कलम 
और कुछ लोन ही दिला दो 

साहेब ने पत्रकार को देखा 
और कहा यह मेरा छटनी किया मजदूर हैं 
फिर उसे कागज़ का टुकड़ा दिया थमा 
मजदूर समझा नही 
पत्रकार बोला ...
मजदूर मित्र तुम्हारे विषय में ही लिखूंगा 
अगले दिन खबर छपी 
छटनी किये मजदूर ने
उधार न देने पर 
मालिक से बदसलूकी की
और बाद में ख़ुदकुशी कर ली ....
मजदूरों का एक धड़ा 
इसे साजिश मानने पर अड़ा  
सरकार ने जाँच के आदेश दे दिए है...
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४.४.२०१४
एक मुक्तक
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पुष्पों ने आज समस्त सुगन्ध हवा में दी बिखेर,
लहरों पर उसके नाम की रेखाएं सागर ने दी उकेर ,
वह आई जीवन में और गई उड़ेल मधु उर में मेरे ,
लगी तब से ही कविता,ग़ज़ल,नज़्म कहने की टेर|