कौन
खड़े हो क्यों मौन
हुज़ूर मैं एक मजदूर
पैसे से हूँ मजबूर
कभी किसी की बाई
कभी किसी की रसोई की सफाई
बेटा और कभी बेटी बीमार
कभी बूढी माँ को पैसे की दरकार
बहुत महंगाई है
दाल भी सौ रूपये में एक किलो आई हैं
प्याज का दाम न पूछो
किसकी कुर्सी का बाप हैं, न पूछो
किस-किस का भाव बताऊँ
कौन -कौन सा दुखड़ा सुनाऊं
नौकरी से भी आपने निकाल दिया ....
सरकार कुछ मदद हो जाये
दूंगा दुआ
मिलेंगी अगर बीमार को दवा
साहब खैरात नहीं
उधार चाहिए
हर महीने की मजदूरी से कटना चाहिए
अब यह कैसे कहूँ .....
न जाने कहाँ से आ जाते है
खुद को खुद्दार बताते हैं
पर मजदूर
और मजबूर
होने का नाटक दिखाते हैं
कहाँ से दे तुम्हे ?
पिछले साल साढ़े चार फ़ीसदी बढ़ा व्यापार
घाटे ने किया चौपट हैं और लाचार
पेट्रोल और डीज़ल के दाम में आग लगी
तो मजदूरों की छटनी करनी पड़ी
बीबी और बच्चों का जेबखर्च
नही कर सकते कम
वे तो कर देते हैं नाक में दम
होटल में जाना कर दिया कम
रोज नही ,बस तीसरे दिन में गए थम
सुनकर
मजदूर पत्रकार की ओर मुड़ा
पत्रकार भी भूख से रहा था लड़खड़ा
बोला मजदूर ..
मित्र ,तुम तो हमारे सच्चे हितेषी हो
यहीं के और देशी हो
कैसे चलेगा जीवन ...
कुछ तो लिख डालों ,चलो दो कलम
और कुछ लोन ही दिला दो
साहेब ने पत्रकार को देखा
और कहा यह मेरा छटनी किया मजदूर हैं
फिर उसे कागज़ का टुकड़ा दिया थमा
मजदूर समझा नही
पत्रकार बोला ...
मजदूर मित्र तुम्हारे विषय में ही लिखूंगा
अगले दिन खबर छपी
छटनी किये मजदूर ने
उधार न देने पर
मालिक से बदसलूकी की
और बाद में ख़ुदकुशी कर ली ....
मजदूरों का एक धड़ा
इसे साजिश मानने पर अड़ा
सरकार ने जाँच के आदेश दे दिए है...
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४.४.२०१४
खड़े हो क्यों मौन
हुज़ूर मैं एक मजदूर
पैसे से हूँ मजबूर
कभी किसी की बाई
कभी किसी की रसोई की सफाई
बेटा और कभी बेटी बीमार
कभी बूढी माँ को पैसे की दरकार
बहुत महंगाई है
दाल भी सौ रूपये में एक किलो आई हैं
प्याज का दाम न पूछो
किसकी कुर्सी का बाप हैं, न पूछो
किस-किस का भाव बताऊँ
कौन -कौन सा दुखड़ा सुनाऊं
नौकरी से भी आपने निकाल दिया ....
सरकार कुछ मदद हो जाये
दूंगा दुआ
मिलेंगी अगर बीमार को दवा
साहब खैरात नहीं
उधार चाहिए
हर महीने की मजदूरी से कटना चाहिए
अब यह कैसे कहूँ .....
न जाने कहाँ से आ जाते है
खुद को खुद्दार बताते हैं
पर मजदूर
और मजबूर
होने का नाटक दिखाते हैं
कहाँ से दे तुम्हे ?
पिछले साल साढ़े चार फ़ीसदी बढ़ा व्यापार
घाटे ने किया चौपट हैं और लाचार
पेट्रोल और डीज़ल के दाम में आग लगी
तो मजदूरों की छटनी करनी पड़ी
बीबी और बच्चों का जेबखर्च
नही कर सकते कम
वे तो कर देते हैं नाक में दम
होटल में जाना कर दिया कम
रोज नही ,बस तीसरे दिन में गए थम
सुनकर
मजदूर पत्रकार की ओर मुड़ा
पत्रकार भी भूख से रहा था लड़खड़ा
बोला मजदूर ..
मित्र ,तुम तो हमारे सच्चे हितेषी हो
यहीं के और देशी हो
कैसे चलेगा जीवन ...
कुछ तो लिख डालों ,चलो दो कलम
और कुछ लोन ही दिला दो
साहेब ने पत्रकार को देखा
और कहा यह मेरा छटनी किया मजदूर हैं
फिर उसे कागज़ का टुकड़ा दिया थमा
मजदूर समझा नही
पत्रकार बोला ...
मजदूर मित्र तुम्हारे विषय में ही लिखूंगा
अगले दिन खबर छपी
छटनी किये मजदूर ने
उधार न देने पर
मालिक से बदसलूकी की
और बाद में ख़ुदकुशी कर ली ....
मजदूरों का एक धड़ा
इसे साजिश मानने पर अड़ा
सरकार ने जाँच के आदेश दे दिए है...
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४.४.२०१४
आ. शास्त्री जी आपका बहुत बहुत आभार रचना को सम्मान देने के लिए ...
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