Saturday, 29 April 2017

निरसन


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आज मैं तप लिया 
इस जीवन के लोहे की भट्टी में ...
मगर मेरे पिघलने से
मात्र आठ दस कीले ही बनी
यह चिंता का नहीं
चिंतन का विषय हैं ....
यह भी भ्रम नहीं है .......
कि मैं कीले बनकर किसी घर की छत में जड़ा तो गया  
किसी के आशियाने की शक्ति तो बना 
और यह भी कोई गर्व नहीं कि अब उन आँखों से
टप -टप पानी तो नही टपकेगा
जो हमेशा से चिंतित थी कि अचानक बरसात से
उनकी कुठार का अनाज गीला न हो जाए
वास्तव में देह की ये कीले कुछ अधिक ही चुभ रही थी
मेरी आत्मा के भीतर 
यह तो मात्र निरतिः का निरसन है.....
शेष कुछ नहीं हैं........

रामकिशोर उपाध्याय

Saturday, 22 April 2017

क्या मालूम

मैं किस ओर चला
क्या मालूम ?
कॊई कहे ले गयी पवन उड़ाकर
कॊई कहता नदिया के तीर गया
ज्वाला के संग संग दिन -रात जला
या दीपशिखा संग रमण किया
जुगनू था और वही बनकर
चाँद-सितारों संग भ्रमण किया
क्या मालूम..
कभी 'मैं' ही  नहीँ था  पथपर
कभी 'तुम' भी नहीँ थे मील के पत्थर
तो कॊई कितनी दूर चला
क्या मालूम ??
*
Ramkishore Upadhyay

Good morning

After the night's noisy  lull
Chirping of birds brings life to full
The rays on the chariot give the wake up call
The fountain say take steps big or small
Do the deeds with love that enthrall
It is the hardwork that brings bread and may be butter
Remove the  sad thoughts and mind's clutter
Hope  in the eyes and smile on face
Keep you running and winning  the race
So say thanks to Almighty
For giving the body and thought so mighty.
*
Ramkishore Upadhyay

लघु गीत

जुगनू से दीपक झुक जाये,वो रात अभी तो बाकी है
*
बहता ज्यों दरिया का पानी
रखता मुख में मीठी बानी
नूतन पात्र,नवीन कथानक
रचता है वो रोज कहानी
मंचन हो जिसमें कृन्दन का,वो बात अभी तो बाकी हैं
जुगनू से दीपक झुक जाये,वो रात अभी तो बाकी है ---१
*
महलों पर कुछ लोग खड़े हैं
कुछ नीवों में खूब गड़े है
हंसिया,खुरपी,ट्रेक्टर लेकर
नवसर्जन के स्वप्न बड़े हैं
निकृष्ट तंत्र की फांस कटे,वो घात अभी तो बाकी है
जुगनू से दीपक झुक जाये,वो रात अभी तो बाकी है -2
*
रामकिशोर उपाध्याय


2 अप्रैल 2017

मत पढ़ाओ

पगडण्डी से राजपथ 
है सभी खून से लथपथ 
किसे परवाह कौन बोल गया 
और क्या रह गया अकथ 
शांत सागर में अब उठती हैं ऊँची ऊँची लहरें 
वो भी अमावस में 
चाँद पर भी अब लग गए हैं पहरें 
वो भी मधुमास में 
किसको अब चिंता है 
किसकी पीठ पर बंधा ,किसी के पेट में या किसे के साथ 
एक वही मासूम बिलखता भूख से 
है बस दो निवालों की दरकार 
उसे जो आज फिर चौराहे से गया खाली हाथ 
मत पढ़ाओ उसको 'विश्व पृथ्वी दिवस' का पाठ ......बरखुरदार 
*
रामकिशोर उपाध्याय

Wednesday, 19 April 2017

Faith and Prayer

Faith and Prayer
Are the two arms of life's warfare
Yet invisible,but perfectly potent and fair
So work hard and chant hyms rare 
God is not far away,dive deep and find him there
HE is the one who brings hope and removes  despair
*
Ramkishore Upadhyay

दो बूँद का सागर


अनिल हूँ मैं ...
मुझे तुम्हारी फैक्ट्री से निकलते
जहरीले धुएं से क्या काम
मुझे तो तोड़ देनी है ...
नफरत और जलन  उगलती
सभी अयाचित चिमनियाँ
*
अनल हूँ मैं ....
मुझे तुम्हारे घर के बाहर लगे
झाड़-फूँस से क्या काम
मुझे तो जला देनी हैं
दीमक लगी कमजोर
सभी अवांछित दरवाजों की चौखटें,खिड़कियाँ
*
सलिल हूँ मैं
बहा ले जायेगा तुम्हारे भीतर का लावा
घुल जायेगी जहरीली हवा
मेरे विशाल वक्षस्थल में
जहाँ उद्धत है समेटने को शुष्क सरिताएँ
क्या तुम्हारे दो नयन हो सकते हैं वो बदलियाँ
तुम्हारे ही लिए
जो मुझे दे सके
दो बूंद का सागर ....
*
रामकिशोर उपाध्याय