Saturday, 22 April 2017

लघु गीत

जुगनू से दीपक झुक जाये,वो रात अभी तो बाकी है
*
बहता ज्यों दरिया का पानी
रखता मुख में मीठी बानी
नूतन पात्र,नवीन कथानक
रचता है वो रोज कहानी
मंचन हो जिसमें कृन्दन का,वो बात अभी तो बाकी हैं
जुगनू से दीपक झुक जाये,वो रात अभी तो बाकी है ---१
*
महलों पर कुछ लोग खड़े हैं
कुछ नीवों में खूब गड़े है
हंसिया,खुरपी,ट्रेक्टर लेकर
नवसर्जन के स्वप्न बड़े हैं
निकृष्ट तंत्र की फांस कटे,वो घात अभी तो बाकी है
जुगनू से दीपक झुक जाये,वो रात अभी तो बाकी है -2
*
रामकिशोर उपाध्याय


2 अप्रैल 2017

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