पेड़ की तूने हर शाख काट डाली
नदिया तूने बाँध डाली
पवन को अब तू टोकता है
धरा को गहरे तक खोदता है
और बना डाले महल दुमहले
मगर सोचा नही यह कभी पहले
ये कंक्रीट के जंगल
मेरे एक झटके में हो जायेंगे कंकड़
करके सब विनाश
करेगा तू अब विकास
अब बादलों को भी तू है बांधता
गगन को अपने निकट है मांगता
देख , यह बारिश नही जो दिख रही है
यह मेरी पीड़ा है जो अब झर रही है
जान ले जब मैं नही बचूंगी ........
तो तू कहाँ बचेंगा
अब छोड़ दे यह लम्बी ड़ोर
मत लगा अतिउत्साह में जोर
और सोच कर बता कब थमेगा यह दौर
मगर जल्दी ..
मैं प्रकृति हूँ ......युगों तक तकती नही भोर
*
रामकिशोर उपाध्याय
पवन को अब तू टोकता है
धरा को गहरे तक खोदता है
और बना डाले महल दुमहले
मगर सोचा नही यह कभी पहले
ये कंक्रीट के जंगल
मेरे एक झटके में हो जायेंगे कंकड़
करके सब विनाश
करेगा तू अब विकास
अब बादलों को भी तू है बांधता
गगन को अपने निकट है मांगता
देख , यह बारिश नही जो दिख रही है
यह मेरी पीड़ा है जो अब झर रही है
जान ले जब मैं नही बचूंगी ........
तो तू कहाँ बचेंगा
अब छोड़ दे यह लम्बी ड़ोर
मत लगा अतिउत्साह में जोर
और सोच कर बता कब थमेगा यह दौर
मगर जल्दी ..
मैं प्रकृति हूँ ......युगों तक तकती नही भोर
*
रामकिशोर उपाध्याय