पेड़ की तूने हर शाख काट डाली
नदिया तूने बाँध डाली
पवन को अब तू टोकता है
धरा को गहरे तक खोदता है
और बना डाले महल दुमहले
मगर सोचा नही यह कभी पहले
ये कंक्रीट के जंगल
मेरे एक झटके में हो जायेंगे कंकड़
करके सब विनाश
करेगा तू अब विकास
अब बादलों को भी तू है बांधता
गगन को अपने निकट है मांगता
देख , यह बारिश नही जो दिख रही है
यह मेरी पीड़ा है जो अब झर रही है
जान ले जब मैं नही बचूंगी ........
तो तू कहाँ बचेंगा
अब छोड़ दे यह लम्बी ड़ोर
मत लगा अतिउत्साह में जोर
और सोच कर बता कब थमेगा यह दौर
मगर जल्दी ..
मैं प्रकृति हूँ ......युगों तक तकती नही भोर
*
रामकिशोर उपाध्याय
पवन को अब तू टोकता है
धरा को गहरे तक खोदता है
और बना डाले महल दुमहले
मगर सोचा नही यह कभी पहले
ये कंक्रीट के जंगल
मेरे एक झटके में हो जायेंगे कंकड़
करके सब विनाश
करेगा तू अब विकास
अब बादलों को भी तू है बांधता
गगन को अपने निकट है मांगता
देख , यह बारिश नही जो दिख रही है
यह मेरी पीड़ा है जो अब झर रही है
जान ले जब मैं नही बचूंगी ........
तो तू कहाँ बचेंगा
अब छोड़ दे यह लम्बी ड़ोर
मत लगा अतिउत्साह में जोर
और सोच कर बता कब थमेगा यह दौर
मगर जल्दी ..
मैं प्रकृति हूँ ......युगों तक तकती नही भोर
*
रामकिशोर उपाध्याय
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-05-2016) को "गौतम बुद्ध का मध्यम मार्ग" (चर्चा अंक-2350) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
बुद्ध पूर्णिमा की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय आभार ,,
DeleteSahi hai abhi bhi na samjhe samhale to kya jane kys kimat chuka kar samhalenge
ReplyDeleteSahi hai abhi bhi na samjhe samhale to kya jane kys kimat chuka kar samhalenge
ReplyDeleteसराहना के लिए आभार
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 11 जून 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDelete