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बादलों से
कुछ न कहों आजकल
धूप लील जाते है.....
मेरे हिस्से की
*
धूप से..............
और बस धूप से ही
कुछ न कुछ कहो आजकल
वो ही एक नर्म बिस्तर देती हैं
मेरे सपनों को
मेरी सफ़ेद चांदनी सी यादों को
जो रात को रख दी जाती है
सुनहरी चादर में लपेटकर
और करती है प्रतीक्षा
भोर होने तक ....
***
रामकिशोर उपाध्याय
कुछ न कहों आजकल
धूप लील जाते है.....
मेरे हिस्से की
*
धूप से..............
और बस धूप से ही
कुछ न कुछ कहो आजकल
वो ही एक नर्म बिस्तर देती हैं
मेरे सपनों को
मेरी सफ़ेद चांदनी सी यादों को
जो रात को रख दी जाती है
सुनहरी चादर में लपेटकर
और करती है प्रतीक्षा
भोर होने तक ....
***
रामकिशोर उपाध्याय