Saturday, 21 June 2014

कैंची और सुईं 
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सच 
अगर काटता आदमी को 
किनारे से या बीचों बीच किसी सोने की कैंची से भी 
उस सच की कैंची की धातु को  
अपनी सांसों की भट्टी में पिघलाकर राख कर देना चाहिए .....
*
झूंठ 
अगर सी देता है फ़ासले दिलों के 
किसी लोहे की सुईं को चुभाकर आदमी के जिस्म में भी 
उस  झूंठ की सुईं को ...
नगीना समझकर अपने सर की टोपी में खोंस लेना चाहिए  ...
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रामकिशोर उपाध्याय

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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    आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (23-06-2014) को "जिन्दगी तेरी फिजूलखर्ची" (चर्चा मंच 1652) पर भी होगी!
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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    1. आदरणीय डॉ.रूपचंद्र शास्त्री जी आपका प्रशंसा पाकर रचना धन्य हो गयी ..ह्रदय से आभार

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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    1. प्रतिभा वर्मा जी प्रशंसा पाकर रचना धन्य हो गयी ..ह्रदय से आभार

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