आज
-------सुनती रही जमीन
कान लगाकर
चीखें
निकलती खूंखार वर्दीधारियों के बूटों में लगी नाल से
तोप के गोले सी धमाकेदार
कभी शैतान द्वारा किसी मासूम का सीना कुचलने की
बेबस चीत्कार सी
और बेदम सिसकती रही .....
फ़लक देखता रहा बड़ी बेरहमी से
न रोया, न किसी को बुलाया
और गढ़ता रहा तर्क
अपनी जाहिली के ....
अपनी ख़ामोशी के .....
*****
रामकिशोर उपाध्याय
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