Thursday, 5 June 2014

मित्रो ..यह रचना बंदायूँ के एक गाँव में बलात्कार के बाद पेड़ से लटका दी उन दो मासूम बेटियों के प्रति श्रद्धांजलि है और एक आव्हान भी है ... |
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है कोई दंड देनेवाला यहाँ
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लटका दी गयी
दो बेटियां
आम के उस पेड़ पर
जिसकी शाखाओं पर 
वो अकसर अपनी सहेलियों के संग
खेल कर बड़ी हुई ...
.
सजा दे दी
एक छोटी सी विवशता की इतनी बड़ी
उन नर पिशाचों ने .
उन प्यारी सी अबोध बेटियों को
जो उन माँ बाप की ही नहीं
थी सबकी
मेरी थी
आपकी थी
.
पूछता हैं सारा संसार आज उन दरिंदों से
कि उनकी भी कोई माता होगी
कोई बहन होगी
कहाँ गए वो अमन के पहरेदार
शायद वे तो निकले होंगे वसूली पे
.
क्या हो गया है मेरे मुल्क को
शायद उन बेटियों की चीख पुकार
नक्कारखाने में तूतियों की आवाज बनकर भले ही दब जाए,
मगर उनकी राख में दबी चिंगारियां
धधकाती रहेगी न्याय की ज्वाला
हम सब के दिलों में
और पूछती रहेगी अंतिम निर्णय तक
कैसे थमेगा यह व्यवहार
और है कोई दंड देने वाला ..... ?
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रामकिशोर उपाध्याय

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