Sunday, 27 January 2013

हमारा 64वां गणतंत्र दिवस



लोग कर रहे हैं चर्चा 
कौन बनेगा अगला राजा 
किलों में चक्रव्यूह बनाये जा रहे है 
मीडिया भी खेमाबंदी  में जुट गया हैं
रोज नए -नए टॉक शो हो रहे है 
सर्वे आ रहे हैं 
फत्तू राजा बनेगा 
नहीं-नहीं लट्टू बनेगा 
लोग एंकर के जवाब देते -देते हलकान हो रहे हैं 
लोग  टीवी देखने के मजबूर हैं 
और फिरकी की तरह घूम रहे हैं 

 नए- नए नारे और जुमले उछाले जा रहे हैं 
विदेशी  टीमों ने  प्रचार की कमान संभाल ली हैं  
ट्विटर पर ट्विट किये जा रहे हैं 
और फेसबुक पर नए -नए पोस्ट किये जा रहे हैं 
मिडिल क्लास को फोकस किया जा रहा है,
भैय्या , इस बार यही ग्रुप जितायेगा 
पर राजगद्दी तो अभी खाली नहीं हैं 
राजपुत्रों ने डिजाइनर को आर्डर दे दिए हैं 
नए नए कुर्तों के --
खाली है तो नत्थू की थाली 
विक्की इनके  स्कूल से  एम बी ए करके 
सिफारिश के लिए इन्ही के द्वार पर दस्तक दे रहा हैं 
64वें गणतंत्र दिवस  पर हैं  बस यही नजारा 
पर उन्हें हैं विक्की और नत्थू के वोट का  सहारा 
पैसा फैंक कर वोट लेंगे
और पैसा कमाएंगे 
और क्या? 

Saturday, 19 January 2013

भारत का सिपाही




एक था बेटा 
लाडला था गाँव का 
बना सैनिक 

उठा बन्दूक 
सीमा पे डट गया 
वतन रक्षा 

देखता अरि 
निकाल लेता ऑंखें 
बढाता  मान

बुरी नज़र 
खा गयी थी उसको 
क्षत मस्तक 

नहीं झुकाया 
भाल देश माँ का 
देकर शीश 

निढाल माँ के 
पूछते नहीं है आंसू
बच्चे उदास 

सूनी है  आंखे
नवविवाहिता की 
अधर शांत  

देता सम्मान 
वीरोचित सभी को 
नहीं दुराव     

नहीं भूलता 
बलिदान वीरो का 
मेरा भारत 

Monday, 14 January 2013

कुम्भ /मकर सक्रांति

आज कुम्भ (14 जनवरी ,2013) का शुभारम्भ हुआ ,55 दिन तक यह महापर्व 10 मार्च को पूर्णता प्राप्त करेगा फिर अगले स्थान की और ..... .  मकर सक्रांति पर्व . इस अवसर पर समर्पित है यह हायकू।




सर्दी अलाव 
रेवड़ियाँ गज़क
तिल के  लड्डू 

उडी पतंगे 
प्रेम की लम्बी डोर 
साथ कुनबा 

आस्था  का कुम्भ 
तीन हैं डुबकियाँ  
खाओ  खिचड़ी  
  

Saturday, 12 January 2013

मैं स्त्री हूँ




जब मैं नहीं देखती तुम्हे 
तुम  कोशिश करते हो  कि मैं तुम्हे देखू ,
क्यूंकि मैं स्त्री हूँ --

जब मैं नहीं मुस्कराती 
तुम चाहते हो कि मैं खिलखिलाकर  हंस पडू
क्यूंकि मैं स्त्री हूँ ---

जब स्पर्श तक तुम्हारा  मैं नहीं चाहती     
तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी सेज पर बिछ जाऊ  
क्यूंकि मैं स्त्री हूँ ---

जब योग्य ही मैं नहीं समझती 
कि प्रेम करू तुम्हे और करूँ सर्वस्व अर्पण 
तभी तो मैं तुम्हे दुत्कार देती हूँ 
क्यूंकि तुम नहीं पाते रिझा मुझे 
तब तुम बल से छीन  लेना चाहते हो
समझकर निर्बल कर देते हो मेरा शरीर क्षत-विक्षत 
क्यूंकि मैं स्त्री हूँ-

मैं जब चाहती हूँ, तभी मुस्कराती हूँ 
जिसे  मेरे नेत्र और आत्मा स्वीकार करे 
तभी मैं उस ओर   देखती हूँ 
जो मुझे लगे कि हैं उपयुक्त 
तभी करती हूँ मैं समर्पण 
वही करती हैं मैं रमण
जीवन पर्यन्त  
क्यूंकि मैं स्त्री हूँ-

तू ,यह जान ले पुरुष ! 
अब मैं शरीर पर वार को  नहीं समझती 
कि मेरी अस्मत चली गयी
बस एक राह  चलते दुर्घटना हुई  
अपराधी तुम ही रहे,  
मेरी आत्मा तो निष्कलंक ही रही
इसके बाद भी-
मैं तो जननी , जगत्जननी  हूँ और  रहुंगी  
दुर्गा , शिवा और लक्ष्मी थी, हूँ और रहूंगी 
अब मैं नहीं हूँ  अतीत की अबला नारी
छुआ मुझे तो  समझले आयी हैं मिटने की तेरी बारी 
क्यूंकि मैं स्त्री हूँ-

Friday, 11 January 2013

ये धरती ,ये माता , कुछ मांग रही हैं




उठ जागो अब ऐ वीरों !
ये धरती ,ये माता , कुछ मांग रही हैं,

पिला दूध ,जल और खिला अन्न 
अपने वक्षस्थल का --
सींचा है तुम्हे  अपने लहू से  
दिया हैं चौड़ा सीना 
भरी शिराओं में उर्जा 
अब उसका और अपमान न कर 
चूका ऋण ,ले  आ मस्तक अरि का ,
कर अनुपान शीघ्रता का 

उठ जागो अब ऐ वीरों !
ये बिलखते बालक ,ये रोती नगरी , कुछ मांग रही हैं।

---राम किशोर उपाध्याय 
12.1.2013

Friday, 4 January 2013

मेरा अज्ञान



तत्व 
नहीं पहचानता 
अमरत्व 
नहीं जानता
बस एक
घट हैं -----
जिसके भीतर हैं
एक लोथड़ा
मांस का
ह्रदय --
रहता हैं जहाँ
मेरा विश्वास
मेरा ईश्वर
मेरा प्राण
निष्कलंक
निष्पाप
और
निर्गुण।