जब आप दिखा रहे थे स्वरुप विराट
कुछ समय के लिए मैं ढूंढ रहा था ठाट
जब आप मुख में लिए थे ब्रह्माण्ड
हे कृष्ण ! उस समय मन हो रहा था खंड-खंड
क्यों सखे ?
आप उस दिन आज दिखा रहे थे ,,
मैं आज (जो आपका कल था ) को देख रहा था
सच ,जो देख रहा था कह नही सकता
अब तो प्रभु आप भी उसे गीता में नहीं उद्धृत कर सकते
तुमने कहा था हम सब धर्म के लिए मरे और जिए
मगर यहाँ आदमी अधर्म के लिए मर और जी रहा है
क्या यहीं आधुनिक अर्थ है तुम्हारे कहे 700 श्लोकों का
क्या इस मानव का यही युगधर्म है ?
उस दिन कम था परन्तु आज मैं बहुत अधिक हूँ किंकर्तव्यविमूढ़
आज भी युद्ध के लिए होना चाहता हूँ आरूढ़
मगर आज मेरे रथ के पहिये धंस गये हैं
कर्म में नही कर्मकांड में फंस गये हैं
अब और युद्ध नही ...
समय के दुर्योधन को संधि -पत्र लिख रहा हूँ
कुछ समय के लिए मैं ढूंढ रहा था ठाट
जब आप मुख में लिए थे ब्रह्माण्ड
हे कृष्ण ! उस समय मन हो रहा था खंड-खंड
क्यों सखे ?
आप उस दिन आज दिखा रहे थे ,,
मैं आज (जो आपका कल था ) को देख रहा था
सच ,जो देख रहा था कह नही सकता
अब तो प्रभु आप भी उसे गीता में नहीं उद्धृत कर सकते
तुमने कहा था हम सब धर्म के लिए मरे और जिए
मगर यहाँ आदमी अधर्म के लिए मर और जी रहा है
क्या यहीं आधुनिक अर्थ है तुम्हारे कहे 700 श्लोकों का
क्या इस मानव का यही युगधर्म है ?
उस दिन कम था परन्तु आज मैं बहुत अधिक हूँ किंकर्तव्यविमूढ़
आज भी युद्ध के लिए होना चाहता हूँ आरूढ़
मगर आज मेरे रथ के पहिये धंस गये हैं
कर्म में नही कर्मकांड में फंस गये हैं
अब और युद्ध नही ...
समय के दुर्योधन को संधि -पत्र लिख रहा हूँ
इतिहास इसे मेरी निष्क्रियता अवश्य कहेगा
हे अर्जुन !
मैं तुमसे सहमत हूँ उदास मत हो.....
यह न कुरुक्षेत्र है और न धर्मक्षेत्र
यहाँ की गीता में प्रमुख है ''राज योग ''
यहाँ की गीता में प्रमुख है ''राज योग ''
इसलिए तू कुर्सी के लिए गठजोड़ कर
और शेष मुझपर छोड़ दे ...
मैं सदैव दोषमुक्त रहा हूँ
क्योंकि मैं साक्षी था ...हूँ .......... और रहूँगा
*
रामकिशोर उपाध्याय
*
रामकिशोर उपाध्याय