Friday, 24 October 2014

एक गीतिका

जितना भरता उतना बह जाता,
मन का घट रीता ही रह जाता |
*
गिनकर देता सांसो को फिर भी,
बिन पूछे ही लेकर वह जाता |
*
वह पत्थर सी काया पाकर भी ,
अक्सर ही फूलों से दह जाता |
*
आँखों में आसूं ना दिख जाये ,
गम उसके भीतर ही बह जाता |
*
हम तो सच को सच बतला देंगे,
उसका क्या वह झूठा कह जाता |
*

रामकिशोर उपाध्याय 

2 comments:

  1. जितना भरता उतना बह जाता,
    मन का घट रीता ही रह जाता |वाह बहुत सुन्दर रचना ,गहन चिंतन भाव लिए .मंजुल भटनागर

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    1. मंजुल भटनागर जी इस आत्मीय सराहना के लिए ह्रदयतल से धन्यवाद

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