जितना
भरता उतना बह जाता,
मन
का घट रीता ही रह जाता |
*
गिनकर
देता सांसो को फिर भी,
बिन
पूछे ही लेकर वह जाता |
*
वह
पत्थर सी काया पाकर भी ,
अक्सर
ही फूलों से दह जाता |
*
आँखों
में आसूं ना दिख जाये ,
गम
उसके भीतर ही बह जाता |
*
हम
तो सच को सच बतला देंगे,
उसका
क्या वह झूठा कह जाता |
*
रामकिशोर उपाध्याय
जितना भरता उतना बह जाता,
ReplyDeleteमन का घट रीता ही रह जाता |वाह बहुत सुन्दर रचना ,गहन चिंतन भाव लिए .मंजुल भटनागर
मंजुल भटनागर जी इस आत्मीय सराहना के लिए ह्रदयतल से धन्यवाद
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