Tuesday, 16 December 2014

कुछ न कहना



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बादलों से
कुछ न कहों आजकल
धूप लील जाते है.....
मेरे हिस्से की
*
धूप से..............
और बस धूप से ही
कुछ न कुछ कहो आजकल
वो ही एक नर्म बिस्तर देती हैं
मेरे सपनों को
मेरी सफ़ेद चांदनी सी यादों को
जो रात को रख दी जाती है
सुनहरी चादर में लपेटकर
और करती है प्रतीक्षा
भोर होने तक ....
***
रामकिशोर उपाध्याय

4 comments:

  1. सुंदर अभिव्यक्ति.

    अनिल साहू

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    1. सुप्रभात । अनिल साहू जी सराहना के लिए आभार

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  2. मेरी सफ़ेद चांदनी सी यादों को
    जो रात को रख दी जाती है
    सुनहरी चादर में लपेटकर
    और करती है प्रतीक्षा
    भोर होने तक ....
    ...सुंदरतम अभिव्यक्ति....

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    1. सुप्रभात। सराहना के लिए ह्रदय से आभार नीता जी।

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