एक गीतिका
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2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2
दर्द भरी आहों से शोर नही निकला,
अबतक यादों से वो दौर नहीं निकला |
*
इस बस्ती में रहती है तो बस नफरत,
पर हर इंसा आदमखोर नही निकला |
*
इस दुनियां की अपनी ही रीत निराली,
साधु जिसे हम समझे चोर वही निकला |
*
खूब उडाते हैं दावत बाहर बेटे ,
पर माँ की खातिर एक कौर नही निकला
**
कहते है पोलिटिशियन सभी इक जैसे,
कम से कम वो रिश्वतखोर नही निकला |
***
**
ramkishor upadhyay
20.11.2014
दर्द भरी आहों से शोर नही निकला,
अबतक यादों से वो दौर नहीं निकला |
*
इस बस्ती में रहती है तो बस नफरत,
पर हर इंसा आदमखोर नही निकला |
*
इस दुनियां की अपनी ही रीत निराली,
साधु जिसे हम समझे चोर वही निकला |
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खूब उडाते हैं दावत बाहर बेटे ,
पर माँ की खातिर एक कौर नही निकला
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कहते है पोलिटिशियन सभी इक जैसे,
कम से कम वो रिश्वतखोर नही निकला |
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ramkishor upadhyay
20.11.2014
बढ़िया गीतिका
ReplyDeleteआईना !
सराहना के लिए ह्रदय से धन्यवाद ।
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