Thursday, 20 November 2014

ग़ज़ल..दर्द भरी आहों से..

एक गीतिका
-------------
2 2 2 2 2 2 2 2 2 2 2
दर्द भरी आहों से शोर नही निकला,
अबतक यादों से वो दौर नहीं निकला |
*
इस बस्ती में रहती है तो बस नफरत,
पर हर इंसा आदमखोर नही निकला |
*
इस दुनियां की अपनी ही रीत निराली,
साधु जिसे हम समझे चोर वही निकला |
*
खूब उडाते हैं दावत बाहर बेटे ,
पर माँ की खातिर एक कौर नही निकला
**
कहते है पोलिटिशियन सभी इक जैसे,
कम से कम वो रिश्वतखोर नही निकला |
***
**
ramkishor upadhyay
20.11.2014 

2 comments: