अब सूरज
ढल रहा हैं
आज भी व्यतीत
होकर
कल अतीत हो
जायेगा
रात घिर आयेगे
पर ये अँधेरे भी
इतने तो बुरे
नहीं
स्वप्न तो बुने
जा सकते हैं
इस काल में
............
आज फिर आज दीप
जलेंगे
कुछ नरम तंतुओं
को छुयेगी
चांदनी ...
रचेगी एक नूतन
कहानी
जो साकार होगी
आज के कल में
और कल के आज में
यह नभ तो व्यस्त रहेगा
अपने उपहार बांटने
में
रोज की तरह
अपने कुरते के
बटन बंद कर लो
कोट का गला भी
चाहे तो टाई भी
लगा लो ..
पेंट प्रेस करके
पहन लो
कमीज का कालर
गन्दा नही चलेगा
आकाश के सितारों
को
आप चाक-चोबन्द
लगने चाहिए
कृपा ...........
देते समय.
रामकिशोर
उपाध्याय
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