Wednesday, 1 August 2018

संत ज्ञानेश्वर महाराज -आलंदी (पूना ) में

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नमन संत ज्ञानेश्वर महाराज -२५ जुलाई २०१८  आलंदी (पूना ) में
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भारतीय संस्कृति आरम्भ से ही क्रिया ,भावना और ज्ञान के सम्यक समन्वय के साथ मानव जीवन को पूर्णता प्रदान के पवित्र उद्देश्य से समस्त मानव जाति के मार्गदर्शक के रूप में विश्व में आज भी शिरोमणि बनी हुई है । सुविधासंपन्न और आर्थिक रूप से समृद्ध होकर भीआंतरिक शांति की खोज आज भी समाप्त नही हुई है । यह खोज काल और देश निरपेक्ष रही है। पूरब अपनी आध्यात्मिक शक्ति के कारण समस्त विश्व को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है । भारत का कोना-कोना इस सुगंध से लबरेज है । इसी सात्विक अनुभूति के लिये जब पूना आगमन हुआ तो यह लालसा और प्रबल हो उठी । सभी जानते हैं कि महाराष्ट्र की भूमि संतों की पुण्य भूमि है और संत ज्ञानेश्वर उसके शीर्षस्थ संत है जिनकी समाधि आलंदी में पूना से मात्र 20 किमी है ,तो जाने की ठान ही ली।उस दिन पूना में आकाश मेघच्छादित था ,वर्षा कभी भी आ सकती थी परंतु मन तो उस पुण्य भूमि के दर्शन हेतु विकल था अतः निकल पड़ा । बेटी अर्चना ने अपनी गाड़ी ड्राइवर सागर शिंदे के साथ भेज दी। लगभग 40 मिनट की यात्रा के बाद हम आलंदी में थे । सड़क के निकट ही है संत ज्ञानेश्वर संजीवन समाधि मंदिर । वहाँ जाकर देखा तो दर्शनार्थियों की भारी भीड़ थे । लंबी घुमावदार पंक्ति में भी अन्य भक्तों की तरह लग गया । विशेष द्वार से जाने का अर्थ व्यक्ति के अहंकार को बढ़ाता है अतः अपनी श्रद्धा भावना की पूर्ति के लिये पंक्तिबद्ध होना मुझे उचित लगा । पूरे मार्ग में स्त्री पुरुष उनकी प्रार्थना पसायदान को भक्तिभाव के उच्चारित करते रहे । कहीं कोई हड़बड़ी नही,पूरी सहजता के साथ लोग अपनी बारी आने की प्रतिक्षा में चल रहे थे । लोग उत्साह से भरे थे ।प्रांगण में नर नारी प्रसन्नता से नृत्य कर रहे थे। उनके मुख पर संतोष का भाव परिलक्षित हो रहा था मानो संत समाधि का स्पर्श कर वे जीवन में पूर्णता प्राप्त कर ही लेंगे । लगभग 40 मिनट के इंतज़ार के बाद मैं समाधि द्वार पर था । समाधि को स्पर्श कर माथे से लगाया तो धन्यता अनुभव की । संत ज्ञानेश्वर महाराज ने मात्र 21 वर्ष तीन मास ओर पांच दिन की आयु में जीवित समाधि अपने गुरु एवं अग्रज संत निवृत्ति नाथ जी से 25/11/1296 (त्रयोदशी ,मार्गशीर्ष संवत 1218 )को दोपहर ढाई बजे ली थी । समाधि से पूर्व संत ज्ञानेश्वर महाराज इस स्थान पर कुछ वर्ष रहे ।कहते है वहाँ अजानवृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान लगाते थे अतः उस स्थान पर बैठकर उस महान संत की दिव्य ऊर्जा को ग्रहण करने की प्रार्थना की । संत ज्ञानेश्वर महाराज की दिव्य जीवन - यात्रा अगली कड़ी में । इस अवसर के कुछ चित्र । उनके चरणों में अपनी उच्चतम श्रद्धा भक्ति समर्पित करते हुये यह कामना करता हूँ
अनवरत आनंदे। वर्षतिये ।।
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रामकिशोर उपाध्याय

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