क्या कहना चाह रही हैं
ये आंखे -
काला काला काजल भरकर
समन्दर सी गहराई में
क्या प्रियतम को छुपाना चाह रही हैं
ये आंखे -
सतरंगी दुनिया का ताना बाना बुनती
भरा प्रेम का गागर
बस छलक जाना ही चाह रही हैं
ये आंखे-
अधरो पर जनम जनम की प्यास सजायें
लगी अगन प्रेम की
क्या खुद को ही जलाना चाह रही हैं
ये आंखे-
बेकरार हैं दिल
पर न देंगे सहजता से
क्या इसी भ्रम को बनाए रखना चाह रही हैं
ये आंखे-
कानों मे लटके बुंदे उलझे हैं लटो से
कर दे रहे हैं भ्रमर का स्वागत
पर लाज की अभिव्यक्ति करना ही चाह रही हैं
ये आंखे-
अपूर्व सोंदर्यमयी किसको देना चाह रही हैं ये गुलाब
मैं ही हूं वही लाजवाब
क्या यही कहना चाह रही हैं
ये आंखे ।
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