प्रेम का प्रभाव
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राँझा को हीर के इश्क ने मारा न होता ,आशिक ने किसी नाजनीं का दिल ना तोडा होता
हसीना ने महबूब को दुतकारा ना होता,तो शाइरों के पास भी लिखने का इजारा ना होता
हुस्न में वफ़ा होती और इश्क में जूनून,वादों को निभाया और कसमों को तोडा ना होता
उंगलियों पर नाचते जिस्म होते,,ना अल्फाज़ ही होते और सफीनों का ज़खीरा ना होता
रामकिशोर उपाध्याय
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राँझा को हीर के इश्क ने मारा न होता ,आशिक ने किसी नाजनीं का दिल ना तोडा होता
हसीना ने महबूब को दुतकारा ना होता,तो शाइरों के पास भी लिखने का इजारा ना होता
हुस्न में वफ़ा होती और इश्क में जूनून,वादों को निभाया और कसमों को तोडा ना होता
उंगलियों पर नाचते जिस्म होते,,ना अल्फाज़ ही होते और सफीनों का ज़खीरा ना होता
रामकिशोर उपाध्याय
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