बस एक निवेदन !
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नहीं चाहिये !
ये व्यापक गगन सारा
बस दे दो टुकड़ा एक प्यारा
खिले हो जिसमे अनगिनत तारे
पूरे नभ के और सारे के सारे
नहीं चाहिए
ये पवन भौचक्का
बस दे दो एक हल्का सा झोंका
बहती हो जिसमे सुगंध समीर
स्पर्श जो कर दे मन अधीर
नहीं चाहिए
ये उपवन का बाज़ार
बस दे दो एक पुष्प का उपहार
करता हो जो अनुपम अलभ्य श्रंगार
दर्शन मात्र भर दे आनंद अपरम्पार
नहीं चाहिए
ये प्रेम का अनुचित व्यव्हार
बस दे दो एक क्षण का अनुचार
करता हो जो शीतलता का प्रसार
फिर चाहे भर दे हृद्य में अनुकांक्षा अपार
रामकिशोर उपाध्याय
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