हुस्न और इश्क बहुत हुआ पर तन्हाई की बस्ती में रहते हम अकेले हैं
रुखी सूखी खा पीकर टूटी खाट पे सो जाये जो हम वो मस्त अलबेले हैं
गुलों की खुशबू , मस्त पवन ,झूमते भंवरे , रूठती रमणी से लेना क्या
दिन भर खटके, बू से भीगके,जिस्म तुडाके देता मालिक तब दो धेले हैं
क्या ज़ज्बात, क्या खयालात,क्या अरमान,क्या तिश्नगी और बेवफाई
जल्दी उठना, धूप में जलके चांदनी ओढ़ना बस यूँ ही जीवन को ठेले हैं
Ramkishore Upadhyay
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