काव्य प्रतियोगिता :२ (शीर्षक: भादो, बरसात और बाढ़)
एक विनम्र प्रस्तुति ;;;;;;;;;;;;;;;;;;
बरसात
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मत बरसना बदरा मेरे गाँव में अबकी बार
टूटी मेरी छपरिया,,,अभी पड़े खाली कुठार
अरे निष्ठुर !पिछले बरस जब आये तुम
बह गयी फसल हमारी, डूबे घर और द्वार
जब भी आते हों लाते संग विपत्ति हज़ार
धीरे बहती नदिया तब करती तेज फुन्कार
पेड़ भी टूटे,तट भी टूटे,बिलखे बाल बछड़े
लुगाई रोवे हैं जलावे गीली लकड़ी बार बार
उतना ही बरसना भर जाये धरा की झोली
कोई न सोये भूखा,ना हो बाढ़ का हाहाकार
रामकिशोर उपाध्याय
२८/०८/२०१३
एक विनम्र प्रस्तुति ;;;;;;;;;;;;;;;;;;
बरसात
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मत बरसना बदरा मेरे गाँव में अबकी बार
टूटी मेरी छपरिया,,,अभी पड़े खाली कुठार
अरे निष्ठुर !पिछले बरस जब आये तुम
बह गयी फसल हमारी, डूबे घर और द्वार
जब भी आते हों लाते संग विपत्ति हज़ार
धीरे बहती नदिया तब करती तेज फुन्कार
पेड़ भी टूटे,तट भी टूटे,बिलखे बाल बछड़े
लुगाई रोवे हैं जलावे गीली लकड़ी बार बार
उतना ही बरसना भर जाये धरा की झोली
कोई न सोये भूखा,ना हो बाढ़ का हाहाकार
रामकिशोर उपाध्याय
२८/०८/२०१३
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