Monday, 12 August 2013

ये हम किस दौर से गुजर रहे हैं !


ये हम किस दौर से गुजर रहे हैं
सच को ,, कहने से मुकर रहे हैं

चंद सिक्कों की खातिर लोग तो
जख्म खुद खंजर से खुरच रहे हैं

आज मेरा मरा था तो कल तेरा
आह ये कैसे नज़ारे उभर रहे हैं

कातिल बना  रहनुमा,फिर भी 
लोग नाउम्मीदी से उबर रहे हैं

तू हिम्मत से कदम  बढ़ा, देख
जुगनू भी अँधेरों से उलझ रहे हैं

रामकिशोर उपाध्याय 

2 comments:

  1. तू हिम्मत से कदम बढ़ा, देख
    जुगनू भी अँधेरों से उलझ रहे हैं

    प्रेरक बात!

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  2. अनुपमा पाठक जी , उत्साहवर्धन के लिए आभार

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