Saturday, 11 January 2014

अनंत का यात्री 
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अतीत के 
कुछ एक पन्ने मुड़े -तुड़े
कुछ एक डायरियां 
कहीं से हर्फ़ उड़े 
कही बींट से सने
मेरे संदूक से कल निकले
शायद किसी भ्रमवश सहेज लिया हो
पर उनमे कहीं भी
था नहीं मेरा नाम
हो भी कैसे सकता था
ना इतिहासकार था
ना चित्रकार था
ना गीतकार
ना संगीतविज्ञ
ना कलाकार
मैं
तो इतिहास
भी न बन सका
विदा के समय में
अकेला ही तो था मैं .....
वो मर्यादा में बंधे रहे
मैं बंधन ना छोड़ सका
बस रह गया
नदी के बीच बहते जल सा .....
समय के पत्थरों से टकराता
कभी इस किनारे
कभी उस किनारे
चलता रहा किसी
ना राग में
ना द्वेष में
अनंत को जाता
एक यात्री ....
बस एक यात्री ......
यह किसी ने कहा था

रामकिशोर उपाध्याय

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