Friday, 24 January 2014


इंतज़ार क्यों ?
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शाम से ही 
बैठ गए आकर 
वो सपने 
मेरी आँखों की दहलीज़ पे 
रात का भी किया 
नहीं इंतज़ार .....
मेरे महबूब के थे 
उसके हुस्न के थे 
उसकी वफ़ा के थे
मेरी जुस्तजू के थे
मेरी बेकरारी के थे
दिल की मजबूरी के थे
लम्बे हिज्र से उबरे
मेरे वस्ल के थे
वो मेरे अपने थे .....
उनके साथ देखे थे ...
वो सपने
करते फिर
इंतज़ार क्यों !!!!

रामकिशोर उपाध्याय

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