Saturday, 11 January 2014

दोहा ,,,प्रथम प्रयास --१


मित्रो, आ. छाया शुक्ल जी के कुशल मार्गदर्शन में मैंने आज दोहा लिखने का प्रयास किया हैं ...उन्हें मेरा नमन ..और यह दोहा उन्ही को समर्पित ...सादर 


विधा ==दोहे मात्रिक छंद
 प्रथम तृतीय चरण में १३ - १३ मात्राएँ
द्वितीय चतुर्थ चरण में ११-११ मात्राएँ

व्यवहार ही महत्वपूर्ण,मित्रता या व्यापार,
सदाचार सबसे श्रेष्ठ,**जीवन का आधार.(1)
देखते ही मुखर हुये, नयन द्व और धड़कन,
चढ़ी प्रत्यंचा सासों की,हुआ प्रेम का अंकुरण.(2) 
गीत गा लिया पत्थरों ने,लुट गया सब संगीत,
क्या करना वीणा मृदंग,**जब रूठ गया मीत.(3)
हुआ बाहर भीतर सम,द्रवित भाव भरपूर,
बैरन हुई ठंडी पवन, मिलने को मजबूर. (4)
बन शिष्य सीख किसी से, रख चरणों में ध्यान,
जान लेगा रहस्य सभी ,**क्या वेद क्या पुराण.(5) 
सखा उसे ही मानिए,सुख दुःख दोऊ निभाय,
गिन-गिन दोष दूर करे,जीवन निर्मल बनाय.(6)




कर्म से ही बनता मनुष्य,साधु और शैतान,
जाना हैं किस राह पर ,,,,विवेक से पहचान.


रामकिशोर उपाध्याय

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (12-01-2014) को वो 18 किमी का सफर...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1490
    में "मयंक का कोना"
    पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. व्यवहार ही महत्वपूर्ण,मित्रता या व्यापार,
    सदाचार सबसे श्रेष्ठ,**जीवन का आधार.(1)
    देखते ही मुखर हुये, नयन द्वय और धड़कन,
    चढ़ी प्रत्यंचा सासों की,हुआ प्रेम का अंकुरण.(2)
    गीत गा लिया पत्थरों ने,लुट गया सब संगीत,
    क्या करना वीणा मृदंग,**जब रूठ गया मीत.(3)
    हुआ बाहर भीतर सम,द्रवित भाव भरपूर,
    बैरन हुई ठंडी पवन, मिलने को मजबूर. (4)
    बन शिष्य सीख किसी से, रख चरणों में ध्यान,
    जान लेगा रहस्य सभी ,**क्या वेद क्या पुराण.(5)
    सखा उसे ही मानिए,सुख दुःख दोऊ निभाय,
    गिन-गिन दोष दूर करे,जीवन निर्मल बनाय.(6)

    सुन्दर प्रयास सुन्दर प्रस्तुति सुन्दर व्यंजना और सन्देश बधाई।

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