उदासी से पूछा के वो शाम को ही क्यों छाती हैं,
बोली के आफताब से हर अलम खौफ खाती हैं।
रामकिशोर उपाध्याय
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स्मृतियां
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सुनहरी
स्मृतियां
लता की भांति
मस्तिष्क में लिप्त होकर
वय के साथ लम्बी होकर
जीवन में अक्सर अवसाद के क्षणों में
प्यारी सी गुदगुदी करती रहती हैं।
और
कभी -कभी
बरगद की वायवीय जड़ों
के समान आत्मा की भूमि में धंसकर
शरीर का शोषण भी करती हैं।
(C) Ramkishore Upadhyay
बोली के आफताब से हर अलम खौफ खाती हैं।
रामकिशोर उपाध्याय
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स्मृतियां
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सुनहरी
स्मृतियां
लता की भांति
मस्तिष्क में लिप्त होकर
वय के साथ लम्बी होकर
जीवन में अक्सर अवसाद के क्षणों में
प्यारी सी गुदगुदी करती रहती हैं।
और
कभी -कभी
बरगद की वायवीय जड़ों
के समान आत्मा की भूमि में धंसकर
शरीर का शोषण भी करती हैं।
(C) Ramkishore Upadhyay
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