Tuesday, 8 October 2013

उदासी से पूछा के वो शाम को ही क्यों छाती हैं,
बोली के आफताब से हर अलम खौफ खाती हैं। 

रामकिशोर उपाध्याय



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स्मृतियां
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सुनहरी 
स्मृतियां 
लता की भांति 
मस्तिष्क में लिप्त होकर 
वय के साथ लम्बी होकर 
जीवन में अक्सर अवसाद के क्षणों में 
प्यारी सी गुदगुदी करती रहती हैं।

और
कभी -कभी
बरगद की वायवीय जड़ों
के समान आत्मा की भूमि में धंसकर
शरीर का शोषण भी करती हैं।

(C) Ramkishore Upadhyay

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