यह सब क्यों ?
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बहुत चाहता हूं
कि मेरी उदासी एक शोर से गुज़रे
पर आंखे पहले ही सब राज खोल देती है
जैसे सूखे पत्ती -
पांव पड़ने पर टूटती हैं
बहुत चाहता हूं
की मेरी खुशिया खूब उत्सव मनाये ख़ामोशी से
पर भंगिमाएं पहले ही शोर मचा देती हैं
जैसे हरी पत्ती
हवा चलने पर नाचती हैं
यह सब क्यों ?
राम किशोर उपाध्याय
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बहुत चाहता हूं
कि मेरी उदासी एक शोर से गुज़रे
पर आंखे पहले ही सब राज खोल देती है
जैसे सूखे पत्ती -
पांव पड़ने पर टूटती हैं
बहुत चाहता हूं
की मेरी खुशिया खूब उत्सव मनाये ख़ामोशी से
पर भंगिमाएं पहले ही शोर मचा देती हैं
जैसे हरी पत्ती
हवा चलने पर नाचती हैं
यह सब क्यों ?
राम किशोर उपाध्याय
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