Tuesday, 15 October 2013

शुभ रात्रि
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एक हमी थे जिसको नसीब किनारा ना हुआ,
डूब गए मझधार में,कोई  भी सहारा ना हुआ.
शायद ऐसे लिखी थी हमारी किस्मत*दोस्तों,
जिसपे दिल हारा यहाँ वो तक हमारा ना हुआ.

रामकिशोर उपाध्याय

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