Sunday, 28 July 2013

ऐतरेय उपनिषद से :

ॐ आत्मा वा इकमेव एवाग्र आसीत|नान्यत्किंचन मिषत |स ईक्षत लोकान्नुसृजाइति |
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ॐ इस परमात्मा के नाम का उच्चारण करके उपनिषद का आरम्भ करते है. यह जगत प्रकट होने से पूर्व एक मात्र परमात्मा या अन्य कोई चेष्टा करने वाला नहीं था . उस परम पुरुष परमात्मा ने निश्चय किया कि 'मैं प्राणियों के कर्म फल भोगार्थ भिन्न -भिन्न लोको की रचना करूँ '.

मित्रों , चिंतन करे और मार्गदर्शन भी !

रामकिशोर उपाध्याय

ॐ। ।

ताभ्य पुरुषमानयत्ता अब्रुवन सुकृतंवतेति।
पुरुषों वाव सुकृतमं।ता अब्रवीद्यथायतनं प्रविशतेति।।    

तब परमात्मा (गाय और घोड़े के शरीर देवताओं को रहने के लिए बनाने के बाद, जिसे देवताओं ने यथेष्ट नहीं समझा),मनुष्य का शरीर लाये। वे देवता बोले यह बहुत सुन्दर बन गया। सचमुच मनुष्य शरीर परमात्मा की सुन्दर रचना हैं। उन देवताओं से कहा कि तुम लोग अपने- अपने योग्य आश्रयों में प्रविष्ट हो जाओं।    

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