'आज का महाभारत '
हे हृषिकेश!
मुझे दोनों सेनाओ` के मध्य
मत ले चलो-
हे देवकी नंदन!
आप तो जानते हैं मेरा भ्रातृप्रेम
पर मुझे राज्य भी चाहिए
किसी भी मूल्य पर -
हे पार्थ !
मैं तुम्हारा दर्द समझता हूँ
आओ मैं तुम्हे वहां ले चलता हूँ
जहाँ कई दुर्योधन तो होंगे ,
शकुनी होंगे, पर चौपड़ नहीं होंगी
भीष्म होंगे, पर शरशैय्या नहीं होंगी,
भीष्म होंगे, पर शरशैय्या नहीं होंगी,
ध्रतराष्ट्र होंगे, पर अंधे नहीं होंगे,
वार नहीं वाद होगा-
हम बारी-बारी से
राज्याध्यक्ष कि कुर्सी बाँट लेते हैं-
और हस्तिनापुर में पहले शपथ ग्रहण दुर्योधन का होगा.
पर सखे !
द्रौपदी को उप-राज्याध्यक्ष बनाना ही चाहिए
मैंने उसे खुले केश बाँधने के लिये कह दिया है.
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