खयाल का खयाल
खयाल गीली लकड़ी की तरह जेहन में सुलगते है
और कागज कलम की शह पाकर आग उगलते है
खयालों में पके पुलाव शान से परोसे दिए जाते है
खयाल गीली लकड़ी की तरह जेहन में सुलगते है
और कागज कलम की शह पाकर आग उगलते है
खयालों में पके पुलाव शान से परोसे दिए जाते है
दाने कच्चे नहीं होते क्यूंकि खोपड़ी में उबलते है
राम किशोर उपाध्याय
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