क्या मज़ाल है !
रुबरू ना सही दिल की उस तस्वीर से कहेंगे
उलफत हमने की है तो उलफत करते रहेंगे
दीदार ना सही पर दीदों मे हैं उनका अक्स
चोट करना उसूल ग़र है तो दर्द सहते रहेंगे
वो होले से बज़्म से उठ कर कब चले गये
निगाहे दर पे हम उनका इंतेज़ार करते रहेँगे
वो काशी में रहे या फिर काबे मे हो आबाद
वो खुश रहे हमेशा ये दुआ हम करते रहेंगे
क्या मज़ाल कि लब पर उनका नाम आये
पर उनका नाम खुदा क़ी जगह रटते रहेंगे
ना ख़त लिखेंगे और ना ही करे मुजाहिरा
हवा के झोंके हाल-ए-दिल बयां करते रहेंगे
ना ख़त लिखेंगे और ना ही करे मुजाहिरा
हवा के झोंके हाल-ए-दिल बयां करते रहेंगे
इस सफ़र में कभी दरिया तो कभी सहरा
तो कभी समंदर की मोजों से लड़ते रहेंगे
आरज़ू कैसी है जो सफीनों में नहीं शाया
बिन मुरशिद इश्क का सबक़ पढ़ते रहेंगे
रामकिशोर उपाध्याय
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