Friday, 14 June 2013

सावन का सांवरा बादल 

बादल  भाग रहा  था  
चाँद  भी जाग रहा  था 
सूरज पंख  फैलाएं उड़ रहा था नील गगन में 
पंछी तैर रहे थे नीड़ों की नावों  में 
अम्बर गुनगुना रहा था गीत प्रेम के 
बिजुरी लपलपाकर दे रही थी बुलावा 
मत भागो रे बदरा !

पवन ने रथ थाम दिया था नभ में 
स्वाति आ गया था गगन में 
पपीहे ने मुख खोल दिया 
जीवन  बिंदु पा लिया  
धरती फिर रजस्वला हो गयी 
और  आंखे बंद करके सोख लिया अमृत की बुँदे
नभ का प्यार लेकर हरी भरी हो गयी
सब की प्यास बुझा गया 
जीवन का आगाज़ कर गया 
वह  
जोर-जोर से जब बरस गया 
सावन का एक सांवरा बादल ,,,,,,,,,

रामकिशोर उपाध्याय 

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