सावन का सांवरा बादल
बादल भाग रहा था
चाँद भी जाग रहा था
सूरज पंख फैलाएं उड़ रहा था नील गगन में
पंछी तैर रहे थे नीड़ों की नावों में
अम्बर गुनगुना रहा था गीत प्रेम के
बिजुरी लपलपाकर दे रही थी बुलावा
मत भागो रे बदरा !
पवन ने रथ थाम दिया था नभ में
स्वाति आ गया था गगन में
पपीहे ने मुख खोल दिया
जीवन बिंदु पा लिया
धरती फिर रजस्वला हो गयी
और आंखे बंद करके सोख लिया अमृत की बुँदे
नभ का प्यार लेकर हरी भरी हो गयी
सब की प्यास बुझा गया
जीवन का आगाज़ कर गया
वह
जोर-जोर से जब बरस गया
सावन का एक सांवरा बादल ,,,,,,,,,
रामकिशोर उपाध्याय
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