Sunday, 23 June 2013


एक टीस (उत्तराखंड त्रासदी की )


वो आयी थी कुछ इस तरह क़यामत बनकर
एक नहीं सौ बार मरें हम   बयानात सुनकर
कांप  जाती थी रूह अपनी वो मंजर देखकर
एक तू ही खड़ा रह गया सिर्फ गवाह  बनकर

कोई कहता था कि आया था अजब सैलाब
कोई कहता था कि गुज़र गया एक   गर्दाब
मिट गए कई आशियाने टूटे गए कई ख्वाब
अब बस रह गयी जिंदगी मुसीबत  बनकर

कोई अपनों के हाथ से छुटकर चला गया
कोई  नाराज़ लहरों से लड़ता ही चला गया
कोई पहाड़ पे भूख  प्यास से दम तोड़ गया
हर हादसा रह गया बस एक सवाल बनकर 
  
उजड़े आशियाने तो चलो फिर बन जायेंगे
जो चले छोड़  बीच में वो कहाँ अब आएंगे
एक दिन आँखों से आंसू भी सूख  जायेंगे
गुजरे लम्हे तो जरुर उभरेंगे टीस बनकर      

रामकिशोर उपाध्याय
23-6-2013


3 comments:

  1. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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    1. सक्सेना जी बहुत बहुत आभार . मैं अवश्य ही आपका ब्लॉग पढूंगा

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  2. आदरणीय शास्त्री जी इस प्रेम व् सम्मान के लिए आभार एवं नमन

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