Sunday, 9 June 2013

'आज का महाभारत '
  
हे हृषिकेश!
 मुझे दोनों सेनाओ` के मध्य 
 मत ले चलो-
हे देवकी नंदन
आप तो जानते हैं मेरा भ्रातृप्रेम        
पर मुझे राज्य भी चाहिए 
किसी भी मूल्य पर -
हे पार्थ !
मैं  तुम्हारा दर्द समझता हूँ 
आओ मैं तुम्हे वहां   ले चलता हूँ 
जहाँ  कई दुर्योधन तो होंगे ,
शकुनी होंगे, पर चौपड़  नहीं होंगी   
भीष्म होंगे, पर शरशैय्या नहीं होंगी,
ध्रतराष्ट्र  होंगे, पर अंधे   नहीं होंगे,
वार नहीं वाद होगा-
हम बारी-बारी से 
राज्याध्यक्ष कि कुर्सी बाँट लेते हैं-
और हस्तिनापुर में पहले  शपथ ग्रहण दुर्योधन का होगा.

पर सखे !
द्रौपदी को  उप-राज्याध्यक्ष  बनाना  ही  चाहिए
मैंने  उसे खुले केश बाँधने के लिये  कह दिया है.   
      

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