ये हमारी बुतपरस्ती की हद थी, शायद
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झुकाके नज़रे उनको सलाम कह दिया
ये हमारी सजदों की हद थी,शायद
उनके कंवल से कदमों को बार -बार चूमा
ये हमारी बुतपरस्ती की हद थी, शायद
देखने भर से भी दिल को करार आगया
ये हमारी इबादत की हद थी,शायद
सहके सितम भी जुबां पे नाम ना आया
ये हमारी शराफत की हद थी,शायद
जालिम ने आशियाने को फूंक तक डाला
ये हमारी बर्दाश्त की हद थी,शायद
राम किशोर उपाध्याय
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झुकाके नज़रे उनको सलाम कह दिया
ये हमारी सजदों की हद थी,शायद
उनके कंवल से कदमों को बार -बार चूमा
ये हमारी बुतपरस्ती की हद थी, शायद
देखने भर से भी दिल को करार आगया
ये हमारी इबादत की हद थी,शायद
सहके सितम भी जुबां पे नाम ना आया
ये हमारी शराफत की हद थी,शायद
जालिम ने आशियाने को फूंक तक डाला
ये हमारी बर्दाश्त की हद थी,शायद
राम किशोर उपाध्याय
khoob surat andaj-a bayan
ReplyDeleteDhanyvad ,Lokesh ji.
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteUpasana ji, dhanyvad
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